Tuesday, March 29, 2011


मोहाली का महा मुकाबला: ये 6 चीजें मिल कर दिला सकती हैं भारत को जीत

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नई दिल्ली. बुधवार को भारत और पाकिस्तान के बीच आईसीसी विश्व कप सेमीफाइनल मुकाबले में ये 5 चीजें भारत की जीत तय करेंगी।


भारत की मजबूत बल्लेबाजी 


टीम इंडिया बल्लेबाजी के मामले में पाकिस्तान से आगे है। भारत की ओर से तकरीबन सारे बल्लेबाजों ने लगातार रन बनाए हैं। जबकि पाकिस्तान की ओर से कोई भी बल्लेबाज पूरे टूर्नामेंट में अच्छा नहीं खेला है। उनकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि उनके बल्लेबाजों ने लगातार बढ़िया प्रदर्शन नहीं किया है। भारत का शीर्ष क्रम और मध्य क्रम सेमीफाइनल से पहले फॉर्म में आ चुका है। धोनी को छोड़कर सभी भारतीय बल्लेबाज रन बना रहे हैं। सचिन, सहवाग, गंभीर, युवराज, विराट कोहली और सुरेश रैना ने अच्छे रन बनाए हैं। पाकिस्तान की ओर से सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले उमर अकमल से ज़्यादा पांच भारतीय बल्लेबाजों ने रन बनाए हैं। भारत के तकरीबन सभी बल्लेबाज फॉर्म में हैं। लेकिन चुनौती यह है कि पाकिस्तान ने अब तक बांग्लादेश और श्रीलंका में अपने मैच खेले हैं। वहां की पिचों की तुलना में भारत में बल्लेबाजी करना ज़्यादा आसान है। इसलिए बुधवार के मैच में पाकिस्तान के बल्लेबाज भी फॉर्म में आ सकते हैं।


पाकिस्‍तान की कमजोर गेंदबाजी


भारतीय टीम की गेंदबाजी पाकिस्तान की तुलना में कमजोर है। भारत की ओर से तेज गेंदबाजी में जहीर खान और स्पिनरों में हरभजन सिंह पर काफी कुछ निर्भर करेगा। भारत के लिए चिंता की बात है कि तेज गेंदबाजों में सिर्फ जहीर खान ही फॉर्म में हैं। भारत को युवराज सिंह से गेंदबाजी में भी अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। वहीं, पाकिस्तान तेज गेंदबाजों में उमर गुल, वहाब रियाज और अब्दुल रज्जाक से उम्मीद करेगा। स्पिनरों में शाहिद आफरीदी और सईद अजमल पाकिस्तान के लिए अहम साबित हो सकते हैं। पाकिस्तान के पास गेंदबाजी में भारत की तुलना में विकल्प भी ज़्यादा हैं।


मोहाली में पिच आम तौर पर तेज गेंदबाजों को मदद करती है। अगर बुधवार को भी ऐसा ही रहा, तो पाकिस्‍तान की मजबूत गेंदबाजी की काट के तौर पर भारत तीन तेज गेंदबाजों को भी उतार सकता है। अगर आशीष नेहरा फिट हैं तो जहीर के साथ आशीष और मुनफ इस मैच में खेल सकते हैं। ऐसी स्थिति में अश्विन टीम से बाहर जाएंगे। अगर पिच तेज गेंदबाजी के लिए मुफीद है तो अश्विन को बाहर बिठाया जा सकता है।


टॉस जीत कर बल्‍लेबाजी करना


इस मैच में टॉस जीत कर पहले बैटिंग करना अच्छा रहेगा। शाम को ओस की वजह से बाद में बॉलिंग करना जोखिम भरा हो सकता है। पहले बल्‍लेबाजी करते हुए अगर 280-300 का स्कोर खड़ा कर दिया जाए तो फिर टारगेट हासिल करना मुश्किल हो जाएगा।


आफरीदी पर भारी धोनी के सितारे


उज्‍जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार आज चंद्रमा धनिष्ठा नक्षत्र में, जबकि चंद्र मकर राशि में स्थित होगा। जिसके स्वामी शनि है। शनि भारत के लिए अभी तक सभी मैचों में लाभकारी रहे हैं।


दोनों देशों के कप्तानों - महेंद्र सिंह धोनी और शाहिद आफरीदी - की राशि सिंह ही है। जिस पर शनि की साढ़ेसाती का अंतिम ढ़ैय्या चल रही है। धोनी की राशि में राहु की महादशा में शनि, मंगल का अंतर चल रहा है। मंगल धोनी के मित्र राशि में स्थित होने से उनके लिए सर्वश्रेष्ठ रहेगा।


शाहिद की कुंडली में चंद्र की महादशा में राहु और बुध का अंतर चल रहा है, जो धोनी के मुकाबले कमजोर है परंतु व्यक्तिगत रुप से शक्तिशाली है। यह मैच शनि के स्वामित्व वाली राशि में होने से भारत को विजेता बनने के ज्‍यादा मौके दिलाएगा।


पाकिस्तान के जन्म समय में चंद्रमा मिथुन राशि में था। अत: इस हिसाब से उसकी स्थिति भी कमजोर हो रही है किंतु शुक्र का मकर राशि में स्थित होने से यह मुकाबला कांटे की टक्कर का होगा और दोनों टीमों का पलड़ा लगभग बराबर रहेगा। सितारे दोनो का बराबर पक्ष ले रहे हैं। ऐसे में निर्णय की स्थिति में जिसके पक्ष में ज्यादा शनि-राहु का जोर होगा वह विजेता बनेगा। यह मुकाबला बिल्कुल भी एकतरफा नहीं होगा।


भारत का पक्ष पाकिस्तान के मुकाबले १९-२० का है। चंद्रमा मकर राशि में होने से भारत की राशि कर्क पर होने से सीधी दृष्टि होगी जो भारत के पक्ष में है तथा पाकिस्तान की राशि मिथुन से छठी होने से उनका सर्पोट ज्यादा नहीं करती है।


मौसम की मेहरबानी


भारत की जीत के लिए मौसम की मेहरबानी भी जरूरी है। मंगलवार को मोहाली में हल्‍की बारिश और तेज हवाओं के कारण डर बना हुआ है। लेकिन मौसम विभाग ने बुधवार के लिए कोई चिंताजनक अनुमान जारी नहीं किया है। मौसम साफ रहने की उम्मीद है। दिन में धूप खिलेगी। न्यूनतम तापमान 18 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम 31 डिग्री तक रहने का अनुमान बताया गया है।


सवा अरब लोगों की दुआएं


आज भारत की जीत के लिए सवा अरब लोगों की दुआएं भी टीम इंडिया के साथ होनी चाहिए। हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि इनकी दुआएं टीम के साथ हैं। चंडीगढ़ सहित देश के कई शहरों में लोग भारत की जीत की दुआ करते हुए हवन-यज्ञ कर रहें हैं और बड़े पैमाने पर प्रार्थना सभा का आयोजन कर रहे हैं। विशेष पूजा के जरिए वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि इस मैच में किस्मत पूरी तरह भारत के साथ रहे।


कहिए...ये वर्ल्‍ड कप हमारा है 


यह तय है कि वर्ल्‍ड कप एशिया में ही रहने वाला है, लेकिन हमें इसे भारत लाना है। तो कीजिए विश, बढ़ाईए टीम इंडिया का हौसला और कहिए ये वर्ल्‍ड कप हमारा है...
उम्‍मीदों के बोझ से दबी हैं दोनों टीमें, दबाव से निपटने का माद्दा तय करेगा नतीजा 

Monday, March 28, 2011


आईआईएम की स्टडी: धोनी हैं कैप्टन कूल, जिताएंगे विश्व कप

 
नई दिल्‍ली. आईआईएम इंदौर ने टीम इंडिया के कप्‍तान महेंद्र सिंह धोनी पर स्‍टडी की है। स्टडी में बतौर कप्‍तान धोनी की नेतृत्‍व क्षमता और कौशल को आंका गया है। इसके आधार पर धोनी को कैप्‍टन कूल कहा गया है और स्टडी में यह भी इशारा किया गया है कि धोनी में नेतृत्‍व करने की ऐसी काबिलियत है कि जिसके दम पर वह वह टीम इंडिया को विश्व विजेता बना सकें। आईआईएम इंदौर की तरफ से स्टडी करने वाले प्रोफेसर प्रशांत सलवान ने कप्तान और क्रिकेटर के रूप में धोनी के व्यक्तित्व की जो खूबियां पहचानीं, उन पर एक एक नजर:

टीम प्लेयर
धोनी ने व्यक्तिगत रिकॉर्ड की परवाह किए बिना टीम हित को हमेशा ऊपर रखा है। वे सभी खिलाड़ियों को साथ लेकर चलते हैं। जब भी भारत जीतता है तो वे सबसे पहले घायल या उन खिलाड़ियों के पास जाते हैं, जिन्होंने उस मैच में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। वे मैच जीतते ही उसकी खुमारी में खोते नहीं हैं। इससे टीम के खिलाड़ियों का खुद पर भरोसा बढ़ता है और वे टीम से जुड़ाव महसूस करते हैं। प्रेरित होना, खेल की खूबियों का विकास करना और अपनी क्षमता बढ़ाना धोनी की खासियतें हैं। गौरतलब है कि वे टीम के हित में आक्रामक बल्लेबाजी बहुत कम करते हैं।   

धोनी अपनी टीम के लिए पूरी तरह समर्पित रहते हैं। वह खुद से पहले हमेशा टीम के बार में सोचते हैं। इसलिए हमेशा उन्होंने अपने फॉर्म की चिंता किए बगैर अच्छे खिलाड़ियों को ऊपर रखा है। बुरे फॉर्म से गुजर रहे धोनी को कई दिग्गजों ने सलाह दी कि वो खुद को क्रम में ऊपर कर दें, लेकिन वह नहीं माने। धोनी ने इस पर कहा था कि ये टीम की जरूरत पर निर्भर करता है। विराट, गंभीर और युवराज क्रम में ऊपर जाकर बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। मैं सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए क्रम नहीं बदल सकता।

खिलाड़ियों की खूबी- खामियों की पूरी जानकारीधोनी की एक और खासियत है अपनी टीम के खिलाड़ियों की खूबी-खामी को समझना। वे अपनी टीम के खिलाड़ियों को कई बार खुद उनसे बेहतर समझते हैं। कई बार बोर्ड खिलाड़ी पर भरोसा नहीं करता है। बोर्ड को शंका होती है कि क्या यह खिलाड़ी प्रदर्शन कर पाएगा? लेकिन धोनी जानते हैं कि उस  खिलाड़ी में क्षमता है वह टेस्ट या वनडे क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करेगा। वह खिलाड़ियों की खूबी का इस्तेमाल करते हैं और उसकी खामियों से मैच में होने वाले नुकसान को कम से कम करने की कोशिश करते हैं। किसी भी कॉरपोरेट लीडर की तरह वे अच्छी तरह जानते हैं कि अपनी टीम के सदस्यों की क्षमता का सही इस्तेमाल कैसे किया जाए।

2007 के टी-20 विश्व कप के फाइनल में जोगिंदर शर्मा को मैच में उतारना और अंतिम निर्णायक ओवर फिंकवाना, धोनी की इसी क्षमता का एक उदाहरण है। वर्ल्ड कप में जहीर खान से पहले छोटा और फिर गेंद पुरानी होने के बाद लंबा स्पेल करवाना भी इस बात को साबित करता है। धोनी को इस बात का अंदाजा था कि जहीर पुरानी गेंद से बेहतर गेंद करते हैं। इसलिए उन्होंने ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज के खिलाफ मुकाबलों में जहीर से पहले 2 या 3 ओवर करवाए और उसके बाद जब गेंद रिवर्स स्विंग होने लगी तब उन्हें वापस आक्रमण पर लगाया।

टीम के मेंटरबतौर कप्तान धोनी एक अगुवा और नेतृत्व कर्ता के रूप में अपनी टीम के सदस्यों को तैयार करते हैं। किसी अच्छी कंपनी के चेयरमैन की तरह वे जानते हैं कि उपलब्ध संसाधन को क्षमता में कैसे तब्दील करना है। वे मैदान पर मैच के दौरान खिलाड़ियों को तजुर्बा देते हैं। वे किसी भी खिलाड़ी को प्रतिभा से लबरेज मानते हैं। इससे नेतृत्व करने वाले शख्स को भरोसा जमाने और आपसी विश्वास कायम करने में मदद मिलती है। वर्ल्ड कप शुरू होते ही धोनी के टीम चयन पर सवाल खड़े होने लगे थे। मीडिया में अश्विन के स्थान पर चावला को बार-बार मौका देने पर सवाल हो रहे थे, लेकिन धोनी ने अश्विन का सही समय पर सही इस्तेमाल कर सबका मुंह बंद कर दिया। अश्विन ने वेस्ट इंडीज और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मुकाबले में अपनी शानदार गेंदबाजी से सबको प्रभावित किया था।

हालात के मुताबिक रणनीति बनाने-बदलने में माहिर धोनी की एक कप्तान के तौर पर चौथी खासियत यह है कि वे बदलते समय के मुताबिक अपनी रणनीति में बदलाव कर लेते हैं। कई बार वह मैच के दौरान फील्डिंग में बदलाव कर देते हैं और गेंदबाजों के तय क्रम या पारंपरिक क्रम को तोड़ देते हैं। धोनी ने जब भी ऐसा किया है, ज़्यादातर मौकों पर भारत ने मैच जीत लिया है।

कोई भी कप्तान या नेतृत्वकर्ता तभी कामयाब हो सकता है कि जब वह बदलते समय के मुताबिक अपनी रणनीति में जरूरी बदलाव कर सके। धोनी ने लगातार अपने इस गुण का परिचय दिया है। 2008 में उन्‍होंने फील्ड पैटर्न 8-1 करके ऑस्ट्रेलिया को मात दी थी। कंगारुओं की बादशाहत समाप्त करने के लिए एकदम नई सोच और नीति की जरूरत थी। सो, धोनी ने गेंदबाजों से लंबे स्पैल करवाने के बजाय टुकड़ों में गेंदबाजी करवाई। यहां तक कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को रोके रखने के लिए सचिन तेंडुलकर और विराट कोहली तक से बॉलिंग करवाई। इसके बारे में पोंटिंग ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। इस वर्ल्‍ड कप में भी खिलाडि़यों के चयन सहित कई मसलों पर वह जरूरत के अनुसार रणनीति बदलते रहे हैं।

नाकामी का नहीं पड़ने देते असर
कामयाबी और नाकामी का हर इंसान पर असर पड़ता है। लेकिन धोनी ने सफलता और असफलता को कभी भी अपने ऊपर हावी होने नहीं दिया है। ये दो चीजें धोनी की मानसिक 'लक्ष्मण रेखा' को आसानी से पार नहीं कर पाती हैं। इस खासियत की वजह से कप्तान शांत और नाकाम होने की हालत में रणनीति बनाने में सक्षम होता है। वहीं, कामयाब होने की स्थिति में इन खासियतों की वजह से कप्तान संतुष्ट होकर बेपरवाह नहीं होता है। साथ ही वह अभिमान को अपने ऊपर हावी नहीं होने देता है और उसकी नज़र भविष्य के बड़े लक्ष्यों पर टिकी रहती है। धोनी ने एक कप्तान के रूप में कभी अपने खिलाड़ियों को विफलता का ऐहसास नहीं होने दिया। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हार के बाद टीम को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा था। लेकिन धोनी ने इसके चलते खिलाड़ियों पर कभी आरोप नहीं लगाया।

आपकी राय

क्या आप इस स्टडी के निष्कर्ष से सहमत हैं? धोनी की कप्तानी को आप किस तरह आंकते हैं? क्या धोनी में विश्व कप भारत लाने की क्षमताएं हैं? नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी राय लिखकर सबमिट करें और दुनिया भर के पाठकों से शेयर करें-
उम्र, अनुभव और प्रदर्शन के आधार पर भारतीय व पाकिस्‍तानी टीम की तुल

Sunday, March 27, 2011


आरुषि कांड में नया मोड़: हेमराज की पत्‍नी  ने माता-पिता को बताया कातिल

  
नई दिल्ली. 27 march,आरुषि हत्याकांड में तलवार दंपती के मुश्किलें खत्म होती नज़र नहीं आ रही हैं। इस मामले में नया मोड़ आ गया है। इस बार तलवार दंपती के मारे गए नौकर हेमराज की बीवी सामने आई है।
हेमराज की पत्नी ने गाजियाबाद कोर्ट में अर्ज़ी देते हुए दावा किया है कि आरुषि के मां-बाप ही उसकी मौत के जिम्मेदार हैं। साथ ही उसने कहा है कि वो अपना बयान रिकॉर्ड करवाना चाहती है। कोर्ट इस मामले में 27 अप्रैल को सुनवाई करेगा।

ramveer



मैं आई हूं दूल्हों को लूटने


हमारी देवरानी सीरियल में सीधी-सादी भक्ति की भूमिका निभाने के बाद कृष्णा गोकानी बिल्लो जैसे एक रोचक और चुनौतीपूर्ण किरदार का इंतजार कर रही थीं। कृष्णा के अनुसार, 'बिल्लो बिदास है। निडर और साहसी है। वह हर दिन एक नया रूप अख्तियार कर लेती है। वह कई भाषाएं भी बोलती है। दूसरी तरफ उसका एक भावनात्मक अतीत है। बिल्लो के किरदार में कई रंग हैं, जो मुझे अच्छे लगे।' कृष्णा का मानना है कि बिल्लो का किरदार उनके नसीब में ही था, क्योंकि इसके लिए उन्हें ऑडिशन नहीं देना पड़ा। लुक टेस्ट के बाद वह इस किरदार के लिए चुन ली गईं।
'लुटेरी दुल्हन' कृष्णा के पिछले धारावाहिकों 'कसौटी जिंदगी की', 'कार्बन कॉपी', 'हमारी देवरानी' और 'गुलाल' से बिल्कुल अलग है। कृष्णा के अनुसार, 'लुटेरी दुल्हन का कासेप्ट बहुत रोचक है। शीर्षक से समझा जा सकता है कि यह एक लुटेरी दुल्हन बिल्लो की कहानी है। बिल्लो को वैसे लोगों से नफरत है जो चालीस साल की उम्र में शादी करने की सोचते हैं। वह अधेड़ उम्र के दूल्हों को लूटती है। वह उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव करती है।'
कृष्णा के अनुसार, 'यह नॉर्मल कॉमेडी शो नहीं है। इसका ट्रीटमेंट मूवी की तरह किया गया है।' इसमें कृष्णा दर्शकों को बाइक चलाती भी दिखेंगी। कृष्णा कहती हैं, 'यह किरदार मेरे लिए बहुत चैलेंजिंग है, लेकिन मैं यह सोचकर सारे चैलेंज स्वीकार कर रही हूं कि मुझे कुछ नया करने का मौका मिल रहा है और मेरे प्रशसकों को मुझे नए अंदाज में देखने का मौका मिलेगा।'
गौरतलब है कि कृष्णा गोकानी मुंबई में पली-बढ़ी हैं। उन्होंने कॅरियर की शुरुआत होमी वाडिया की असिस्टेंट के तौर पर की थी। कृष्णा कहती हैं, 'मैं एक्ट्रेस कभी नहीं बनना चाहती थी। मैं बिजनेसवूमन बनना चाहती थी, पर किस्मत से अभिनय के क्षेत्र में आ गई। हालाकि अब इस बात से खुश हूं कि मैं इस क्षेत्र में अच्छा काम कर रही हूं। मुझे लोगों का प्यार मिल रहा है।'
अपने कॅरियर को लेकर कृष्णा अगले दो साल तक निश्चित हैं। उसकी वजह वह बताती हैं, मैं दो साल 'लुटेरी दुल्हन' सीरियल में व्यस्त रहूंगी। इस सीरियल के खत्म होने के बाद सोचूंगी कि आगे क्या करना है।
'लुटेरी दुल्हन' का प्रसारण इमेजिन पर कल सोमवार से गुरुवार रात नौ बजे होगा।  

भवर


''मामा मैंने चार गेंदों पर चार छक्के मारे तो उनका कोच पागल हो गया। मैच के बाद मेरे पास आया और मुझे अपनी टीम से खेलने के लिए कहने लगा।'' उसका चेहरा जीत की चमक से दपदपा रहा था।
''फिर तूने क्या कहा?'' मैंने रुचि लेते हुए पूछा ''मैंने कहा अभी तो अण्डर नाईनटीन के ट्रायल पर हरियाणा जा रहा हू- लौट कर देखूंगा।'' उसने कुछ गर्व और कुछ उपेक्षा से उत्तर दिया और शरीर को कुर्सी पर ढ़ीला छोड़ दिया। ''अरे! तू तो राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी हो गया।'' मैंने उसका उत्साह बढ़ाते हुए कहा ''बस मामा, एक बार आई.पी.एल. खेल गया तो समझो वारे-न्यारे हो गए।'' वह दर्प से हसा। मुझे उसकी यह आत्मविश्वास से भरी हुई हसी बहुत भली लगी।
देश के लिए खेलने से ज्यादा उसे आई.पी.एल. में खेलने की चिता थी। क्योंकि आई.पी.एल. में मौका भी ज्यादा था और पैसा भी। पैसा कमा कर वह मा के लिए एक शानदार बगला बनाना चाहता था, गाड़ी खरीदना चाहता था और..
मैंने दिल से दुआ दी कि वह जो-जो चाहता है- पूरा हो। यह उसकी मा का अथक सघर्ष ही था जिसने बेटे को दूसरे युवाओं की तरह स्वप्न के काबिल बना दिया था। वरना तो गरीबी और भुखमरी का एक भयानक दौर उस परिवार से गुजरा था। ट्रायल के लिए हरियाणा जाने से पहले वह एक बार फिर मेरे पास आया और नाराजगी जाहिर करते हुए बोला 'आप मेरा फाइनल मैच देखने क्यों नहीं आए। दफ्तर तो रोज होता है मामा फाइनल रोज-रोज थोड़े ही होता है।' फिर उसने मुझे फाईनल मैच का आखों देखा हाल सुनाना शुरू कर दिया।
यह सच है कि कॉलेज के दिनों में मैं क्रिकेट की डिस्ट्रिक्ट लीग खेल चुका था और यही पता लगने के बाद वह मौहल्ले में मुझसे बेहद आत्मीय भी हो गया था, पर अब मुझे टी.वी. पर क्रिकेट मैच देखने के अतिरिक्त क्रिकेट में और कोई विशेष रुचि नहीं रह गई थी।
पूर्व मैच का हाल सुनाकर वह अंत में बोला ''मामा, जब मुझे 'मैन ऑफ द मैच' का प्राईज देने लगे तो मैंने उन्हे रोक दिया और फोन करके मम्मी को बुलाया, फिर 'मैन ऑफ द मैच' का 'कप' लिया। मम्मी मुझे कहती थी कि तू कुछ कर भी पाएगा या बस, खेलकर वक्त ही बरबाद करता रहेगा- तो मैंने मम्मी को दिखा दिया कि मैं क्या कर रहा हू।''
छोटे-बड़े मैच तो औरों के लिए होते है, खेलने वाले के लिए हर मैच टैस्ट मैच ही होता है- उतना ही प्रतिष्ठित, उतना ही महान। इस सच्चाई को मैं समझ रहा था।
फिर एक दिन उसने मुझे बताया कि उसने इंग्लिश बोलना सीखने के लिए ट्यूशन लगा ली है।
''मामा, इण्डिया की टीम में खेलते हुए मैन ऑफ द मैच बना तो टी.वी. पर कुछ तो बोलना ही पड़ेगा न। तब क्या हिन्दी में बोलूंगा?'' वह व्यग्य से हसा, ''इसलिए अंग्रेजी तो आनी ही चाहिए।'' उसने उत्साह से कहा ठीक ही तो कह रहा था वह- हुक्मरानों के खेल में दासों की भाषा कैसे चल सकती है। मैंने विषयातर करते हुए पूछा, ''अंग्रेजी तो ठीक है पर बाकी पढ़ाई का क्या हाल है?''
''पास हो ही जाऊंगा मामा। ग्यारहवीं में तो मैच खेलने गया हुआ था स्कूल वालों ने बिना इम्तहान के ही पास कर दिया।'' उसने लापरवाही से उत्तर दिया। ''पर इस बार बारहवीं का बोर्ड है- उसमें मैच नहीं चलेगा।'' मैंने चेताया तो वह फौरन बात बदलते हुए जेब से कार्ड निकालकर मुझे दिखाने लगा जिसे दिखाकर उसे बस और ट्रेन के सफर में किराए की छूट मिलती थी। उसे खेल के ही कारण दो हजार रुपया महीना स्कॉलरशिप भी मिलने लगी थी। यानी तय था कि वह औसत दर्जे के खिलाड़यों से कहीं बेहतर खिलाड़ी था।
वह फिर एक दिन मेरे पास आया और कहने लगा ''मामा, मेरा कार ड्राईविग लाईसेंस बनवा दो।'' ''कार चलाना आता है?'' मैंने पूछा ''नहीं, आता तो नहीं है पर सीख जाऊंगा।'' उसने विश्वास से कहा
''जब नौकरी लग जाए तब सीखना, अभी सीखेगा तो कार खरीदने तक भूल जाएगा।'' मैंने सहज भाव से सलाह दी। मेरी बात सुन कर वह हसा और कुछ उपहास भरे स्वर में बोला ''मामा आप भी कैसी बातें करते है। किसी सीरीज में मुझे कार मिल गई और मुझे चलाना नहीं आया तो कितनी बेइज्जाती होगी। इसलिए सीखनी तो पड़ेगी ही।''
सच! कुछ क्षण के लिए मैं भूल ही गया था कि सीरिज में अब कार भी मिलने लगी है। इस छोटे से उदास शहर के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं था कि उसे अण्डर नाईनटीन की क्षेत्रीय टीम में चुन लिया गया था। स्थानीय अखबारों में उसकी फोटो छपी, बयान छपे और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के बारे में टिप्पणिया भी छपीं। वह हीरो बन गया था। पर जब वह मेरे पास आया तो उदास था। पहले वाली चपलता उसमें नहीं थी मैंने बधाई दी तो बोला, ''मामा ऊपर बड़ी धाधली है। बड़ी मुश्किल से मेरा नम्बर आया है।'' वह उदास स्वर में बोला ''क्या हुआ खेलने में कसर रह गई क्या?'' मैंने पूछा ''नहीं, मामा, मैं बहुत बढि़या खेला। सभी मेरी तारीफ कर रहे थे। पर वहा दो ऐसे लड़के भी थे जो चार-चार, बार आऊट हुए पर एम्पायर ने उन्हे आऊट ही नहीं दिया और उनकी सैंचुरी हो गई। लोग कह रहे थे कि उनके बाप बहुत अमीर है, उन्होंने एम्पायर को खरीद लिया है। उनकी वजह से मेरा नम्बर कटते-कटते रह गया।'' उसके कोमल मन पर खरोंच लगी हुई थी। ''मामा, ऐसा हुआ तो आगे और भी मुश्किल हो जाएगी।'' उसने फिर चितित स्वर में कहा।
खरीद-फरोख्त का यह धधा जग-जाहिर था। ''मामा, मैच खत्म होते ही, लोगों ने मुझे कंधे पर उठा लिया। देखना मामा, एक दिन मैं ऐसे ही इण्डिया को भी जिताऊंगा।'' उस दिन भी वह कोई टूर्नामेंट खेल कर लौटा था और बेहद उत्साहित था। ''तेरा रिजल्ट भी तो आना था- क्या हुआ?'' बधाई देने के बाद मैने पूछा।
''छोड़ो मामा! कौन सा कुंभ का मेला है जो बारह साल बाद आएगा। इस साल नहीं तो अगले साल सही।'' उसने कंधे झटकते हुए कहा। मैं समझ गया कि वह रह गया है।
फिर वह दिन भी आया जब उसे फाईनल ट्रायल के लिए जाना था। उससे पूजा अर्चना करवाई गई, नारियल फोड़ा गया और उसकी मा ने नाक रगड़-रगड़ कर उसके लिए मन्नत मागी। उसे विदा करने स्टेशन पर बहुत से लोग गए थे- मैं भी गया था।
उसका क्या हुआ यह जानने के लिए रोज मैं अखबार की एक-एक पक्ति पढ़ जाता- पर ट्रायल की कहीं कोई खबर नहीं छपती। एक दिन खिलाड़ियों की भर्ती के लिए छपी हुई रेलवे की विज्ञप्ति ने मुझे झिझोड़ दिया। ऐसी विज्ञप्तिया पहले भी छपी होंगी पर मैं तो पहली बार पढ़ रहा था।
रेलवे में खिलाड़ी-कोटे से भर्ती के लिए प्रार्थना-पत्र मागे गए थे। खिलाड़ी को 'राज्य', 'विश्वविद्यालय' या देश के लिए खेला हुआ होना जरूरी था- और पद था- खलासी का। अपना सर्वस्व खेलों पर लुटा देने वाले खिलाड़ियों के लिए यह एक अपमानजनक आमत्रण था।
उस रात मैं बेहद परेशान रहा। भविष्य के सपनों में डूबा हुआ उसका अलमस्त मासूम चेहरा बार-बार मेरे जेहन में उभरा। मैंने ईश्वर से प्रार्थना की कि वह अपने मकसद में कामयाब हो। क्योंकि यदि वह असफल हुआ तो- वह देश के लिए खेल पाएगा या नहीं- यह प्रश्न गौण हो जाएगा और एक नया प्रश्न जन्म ले लेगा कि अब वह खलासी भी बन पाएगा या नहीं!.. और फिर आरम्भ हो जाएगी उस भवर की यात्रा जिसमें डूबकर कोई खिलाड़ी फिर कभी नहीं उभरा। उस रात सपनों में किताबों के जले हुए शैल्फ उभरे, कोयला हो चुकी राइटिग टेबल और राख बनी जिल्दवाली किताबों की कतारे उभरीं। सोचता हू पता नहीं कैसे इन सपनों को हमारी हैसियत का पता लग जाता है।