आईआईएम की स्टडी: धोनी हैं कैप्टन कूल, जिताएंगे विश्व कप
नई दिल्ली. आईआईएम इंदौर ने टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी पर स्टडी की है। स्टडी में बतौर कप्तान धोनी की नेतृत्व क्षमता और कौशल को आंका गया है। इसके आधार पर धोनी को कैप्टन कूल कहा गया है और स्टडी में यह भी इशारा किया गया है कि धोनी में नेतृत्व करने की ऐसी काबिलियत है कि जिसके दम पर वह वह टीम इंडिया को विश्व विजेता बना सकें। आईआईएम इंदौर की तरफ से स्टडी करने वाले प्रोफेसर प्रशांत सलवान ने कप्तान और क्रिकेटर के रूप में धोनी के व्यक्तित्व की जो खूबियां पहचानीं, उन पर एक एक नजर:
टीम प्लेयर
धोनी ने व्यक्तिगत रिकॉर्ड की परवाह किए बिना टीम हित को हमेशा ऊपर रखा है। वे सभी खिलाड़ियों को साथ लेकर चलते हैं। जब भी भारत जीतता है तो वे सबसे पहले घायल या उन खिलाड़ियों के पास जाते हैं, जिन्होंने उस मैच में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। वे मैच जीतते ही उसकी खुमारी में खोते नहीं हैं। इससे टीम के खिलाड़ियों का खुद पर भरोसा बढ़ता है और वे टीम से जुड़ाव महसूस करते हैं। प्रेरित होना, खेल की खूबियों का विकास करना और अपनी क्षमता बढ़ाना धोनी की खासियतें हैं। गौरतलब है कि वे टीम के हित में आक्रामक बल्लेबाजी बहुत कम करते हैं।
धोनी अपनी टीम के लिए पूरी तरह समर्पित रहते हैं। वह खुद से पहले हमेशा टीम के बार में सोचते हैं। इसलिए हमेशा उन्होंने अपने फॉर्म की चिंता किए बगैर अच्छे खिलाड़ियों को ऊपर रखा है। बुरे फॉर्म से गुजर रहे धोनी को कई दिग्गजों ने सलाह दी कि वो खुद को क्रम में ऊपर कर दें, लेकिन वह नहीं माने। धोनी ने इस पर कहा था कि ये टीम की जरूरत पर निर्भर करता है। विराट, गंभीर और युवराज क्रम में ऊपर जाकर बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। मैं सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए क्रम नहीं बदल सकता।
खिलाड़ियों की खूबी- खामियों की पूरी जानकारीधोनी की एक और खासियत है अपनी टीम के खिलाड़ियों की खूबी-खामी को समझना। वे अपनी टीम के खिलाड़ियों को कई बार खुद उनसे बेहतर समझते हैं। कई बार बोर्ड खिलाड़ी पर भरोसा नहीं करता है। बोर्ड को शंका होती है कि क्या यह खिलाड़ी प्रदर्शन कर पाएगा? लेकिन धोनी जानते हैं कि उस खिलाड़ी में क्षमता है वह टेस्ट या वनडे क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करेगा। वह खिलाड़ियों की खूबी का इस्तेमाल करते हैं और उसकी खामियों से मैच में होने वाले नुकसान को कम से कम करने की कोशिश करते हैं। किसी भी कॉरपोरेट लीडर की तरह वे अच्छी तरह जानते हैं कि अपनी टीम के सदस्यों की क्षमता का सही इस्तेमाल कैसे किया जाए।
2007 के टी-20 विश्व कप के फाइनल में जोगिंदर शर्मा को मैच में उतारना और अंतिम निर्णायक ओवर फिंकवाना, धोनी की इसी क्षमता का एक उदाहरण है। वर्ल्ड कप में जहीर खान से पहले छोटा और फिर गेंद पुरानी होने के बाद लंबा स्पेल करवाना भी इस बात को साबित करता है। धोनी को इस बात का अंदाजा था कि जहीर पुरानी गेंद से बेहतर गेंद करते हैं। इसलिए उन्होंने ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज के खिलाफ मुकाबलों में जहीर से पहले 2 या 3 ओवर करवाए और उसके बाद जब गेंद रिवर्स स्विंग होने लगी तब उन्हें वापस आक्रमण पर लगाया।
टीम के मेंटरबतौर कप्तान धोनी एक अगुवा और नेतृत्व कर्ता के रूप में अपनी टीम के सदस्यों को तैयार करते हैं। किसी अच्छी कंपनी के चेयरमैन की तरह वे जानते हैं कि उपलब्ध संसाधन को क्षमता में कैसे तब्दील करना है। वे मैदान पर मैच के दौरान खिलाड़ियों को तजुर्बा देते हैं। वे किसी भी खिलाड़ी को प्रतिभा से लबरेज मानते हैं। इससे नेतृत्व करने वाले शख्स को भरोसा जमाने और आपसी विश्वास कायम करने में मदद मिलती है। वर्ल्ड कप शुरू होते ही धोनी के टीम चयन पर सवाल खड़े होने लगे थे। मीडिया में अश्विन के स्थान पर चावला को बार-बार मौका देने पर सवाल हो रहे थे, लेकिन धोनी ने अश्विन का सही समय पर सही इस्तेमाल कर सबका मुंह बंद कर दिया। अश्विन ने वेस्ट इंडीज और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मुकाबले में अपनी शानदार गेंदबाजी से सबको प्रभावित किया था।
हालात के मुताबिक रणनीति बनाने-बदलने में माहिर धोनी की एक कप्तान के तौर पर चौथी खासियत यह है कि वे बदलते समय के मुताबिक अपनी रणनीति में बदलाव कर लेते हैं। कई बार वह मैच के दौरान फील्डिंग में बदलाव कर देते हैं और गेंदबाजों के तय क्रम या पारंपरिक क्रम को तोड़ देते हैं। धोनी ने जब भी ऐसा किया है, ज़्यादातर मौकों पर भारत ने मैच जीत लिया है।
कोई भी कप्तान या नेतृत्वकर्ता तभी कामयाब हो सकता है कि जब वह बदलते समय के मुताबिक अपनी रणनीति में जरूरी बदलाव कर सके। धोनी ने लगातार अपने इस गुण का परिचय दिया है। 2008 में उन्होंने फील्ड पैटर्न 8-1 करके ऑस्ट्रेलिया को मात दी थी। कंगारुओं की बादशाहत समाप्त करने के लिए एकदम नई सोच और नीति की जरूरत थी। सो, धोनी ने गेंदबाजों से लंबे स्पैल करवाने के बजाय टुकड़ों में गेंदबाजी करवाई। यहां तक कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को रोके रखने के लिए सचिन तेंडुलकर और विराट कोहली तक से बॉलिंग करवाई। इसके बारे में पोंटिंग ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। इस वर्ल्ड कप में भी खिलाडि़यों के चयन सहित कई मसलों पर वह जरूरत के अनुसार रणनीति बदलते रहे हैं।
नाकामी का नहीं पड़ने देते असर
कामयाबी और नाकामी का हर इंसान पर असर पड़ता है। लेकिन धोनी ने सफलता और असफलता को कभी भी अपने ऊपर हावी होने नहीं दिया है। ये दो चीजें धोनी की मानसिक 'लक्ष्मण रेखा' को आसानी से पार नहीं कर पाती हैं। इस खासियत की वजह से कप्तान शांत और नाकाम होने की हालत में रणनीति बनाने में सक्षम होता है। वहीं, कामयाब होने की स्थिति में इन खासियतों की वजह से कप्तान संतुष्ट होकर बेपरवाह नहीं होता है। साथ ही वह अभिमान को अपने ऊपर हावी नहीं होने देता है और उसकी नज़र भविष्य के बड़े लक्ष्यों पर टिकी रहती है। धोनी ने एक कप्तान के रूप में कभी अपने खिलाड़ियों को विफलता का ऐहसास नहीं होने दिया। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हार के बाद टीम को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा था। लेकिन धोनी ने इसके चलते खिलाड़ियों पर कभी आरोप नहीं लगाया।
आपकी राय
क्या आप इस स्टडी के निष्कर्ष से सहमत हैं? धोनी की कप्तानी को आप किस तरह आंकते हैं? क्या धोनी में विश्व कप भारत लाने की क्षमताएं हैं? नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी राय लिखकर सबमिट करें और दुनिया भर के पाठकों से शेयर करें-
उम्र, अनुभव और प्रदर्शन के आधार पर भारतीय व पाकिस्तानी टीम की तुल
टीम प्लेयर
धोनी ने व्यक्तिगत रिकॉर्ड की परवाह किए बिना टीम हित को हमेशा ऊपर रखा है। वे सभी खिलाड़ियों को साथ लेकर चलते हैं। जब भी भारत जीतता है तो वे सबसे पहले घायल या उन खिलाड़ियों के पास जाते हैं, जिन्होंने उस मैच में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। वे मैच जीतते ही उसकी खुमारी में खोते नहीं हैं। इससे टीम के खिलाड़ियों का खुद पर भरोसा बढ़ता है और वे टीम से जुड़ाव महसूस करते हैं। प्रेरित होना, खेल की खूबियों का विकास करना और अपनी क्षमता बढ़ाना धोनी की खासियतें हैं। गौरतलब है कि वे टीम के हित में आक्रामक बल्लेबाजी बहुत कम करते हैं।
धोनी अपनी टीम के लिए पूरी तरह समर्पित रहते हैं। वह खुद से पहले हमेशा टीम के बार में सोचते हैं। इसलिए हमेशा उन्होंने अपने फॉर्म की चिंता किए बगैर अच्छे खिलाड़ियों को ऊपर रखा है। बुरे फॉर्म से गुजर रहे धोनी को कई दिग्गजों ने सलाह दी कि वो खुद को क्रम में ऊपर कर दें, लेकिन वह नहीं माने। धोनी ने इस पर कहा था कि ये टीम की जरूरत पर निर्भर करता है। विराट, गंभीर और युवराज क्रम में ऊपर जाकर बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। मैं सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए क्रम नहीं बदल सकता।
खिलाड़ियों की खूबी- खामियों की पूरी जानकारीधोनी की एक और खासियत है अपनी टीम के खिलाड़ियों की खूबी-खामी को समझना। वे अपनी टीम के खिलाड़ियों को कई बार खुद उनसे बेहतर समझते हैं। कई बार बोर्ड खिलाड़ी पर भरोसा नहीं करता है। बोर्ड को शंका होती है कि क्या यह खिलाड़ी प्रदर्शन कर पाएगा? लेकिन धोनी जानते हैं कि उस खिलाड़ी में क्षमता है वह टेस्ट या वनडे क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करेगा। वह खिलाड़ियों की खूबी का इस्तेमाल करते हैं और उसकी खामियों से मैच में होने वाले नुकसान को कम से कम करने की कोशिश करते हैं। किसी भी कॉरपोरेट लीडर की तरह वे अच्छी तरह जानते हैं कि अपनी टीम के सदस्यों की क्षमता का सही इस्तेमाल कैसे किया जाए।
2007 के टी-20 विश्व कप के फाइनल में जोगिंदर शर्मा को मैच में उतारना और अंतिम निर्णायक ओवर फिंकवाना, धोनी की इसी क्षमता का एक उदाहरण है। वर्ल्ड कप में जहीर खान से पहले छोटा और फिर गेंद पुरानी होने के बाद लंबा स्पेल करवाना भी इस बात को साबित करता है। धोनी को इस बात का अंदाजा था कि जहीर पुरानी गेंद से बेहतर गेंद करते हैं। इसलिए उन्होंने ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज के खिलाफ मुकाबलों में जहीर से पहले 2 या 3 ओवर करवाए और उसके बाद जब गेंद रिवर्स स्विंग होने लगी तब उन्हें वापस आक्रमण पर लगाया।
टीम के मेंटरबतौर कप्तान धोनी एक अगुवा और नेतृत्व कर्ता के रूप में अपनी टीम के सदस्यों को तैयार करते हैं। किसी अच्छी कंपनी के चेयरमैन की तरह वे जानते हैं कि उपलब्ध संसाधन को क्षमता में कैसे तब्दील करना है। वे मैदान पर मैच के दौरान खिलाड़ियों को तजुर्बा देते हैं। वे किसी भी खिलाड़ी को प्रतिभा से लबरेज मानते हैं। इससे नेतृत्व करने वाले शख्स को भरोसा जमाने और आपसी विश्वास कायम करने में मदद मिलती है। वर्ल्ड कप शुरू होते ही धोनी के टीम चयन पर सवाल खड़े होने लगे थे। मीडिया में अश्विन के स्थान पर चावला को बार-बार मौका देने पर सवाल हो रहे थे, लेकिन धोनी ने अश्विन का सही समय पर सही इस्तेमाल कर सबका मुंह बंद कर दिया। अश्विन ने वेस्ट इंडीज और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मुकाबले में अपनी शानदार गेंदबाजी से सबको प्रभावित किया था।
हालात के मुताबिक रणनीति बनाने-बदलने में माहिर धोनी की एक कप्तान के तौर पर चौथी खासियत यह है कि वे बदलते समय के मुताबिक अपनी रणनीति में बदलाव कर लेते हैं। कई बार वह मैच के दौरान फील्डिंग में बदलाव कर देते हैं और गेंदबाजों के तय क्रम या पारंपरिक क्रम को तोड़ देते हैं। धोनी ने जब भी ऐसा किया है, ज़्यादातर मौकों पर भारत ने मैच जीत लिया है।
कोई भी कप्तान या नेतृत्वकर्ता तभी कामयाब हो सकता है कि जब वह बदलते समय के मुताबिक अपनी रणनीति में जरूरी बदलाव कर सके। धोनी ने लगातार अपने इस गुण का परिचय दिया है। 2008 में उन्होंने फील्ड पैटर्न 8-1 करके ऑस्ट्रेलिया को मात दी थी। कंगारुओं की बादशाहत समाप्त करने के लिए एकदम नई सोच और नीति की जरूरत थी। सो, धोनी ने गेंदबाजों से लंबे स्पैल करवाने के बजाय टुकड़ों में गेंदबाजी करवाई। यहां तक कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को रोके रखने के लिए सचिन तेंडुलकर और विराट कोहली तक से बॉलिंग करवाई। इसके बारे में पोंटिंग ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। इस वर्ल्ड कप में भी खिलाडि़यों के चयन सहित कई मसलों पर वह जरूरत के अनुसार रणनीति बदलते रहे हैं।
नाकामी का नहीं पड़ने देते असर
कामयाबी और नाकामी का हर इंसान पर असर पड़ता है। लेकिन धोनी ने सफलता और असफलता को कभी भी अपने ऊपर हावी होने नहीं दिया है। ये दो चीजें धोनी की मानसिक 'लक्ष्मण रेखा' को आसानी से पार नहीं कर पाती हैं। इस खासियत की वजह से कप्तान शांत और नाकाम होने की हालत में रणनीति बनाने में सक्षम होता है। वहीं, कामयाब होने की स्थिति में इन खासियतों की वजह से कप्तान संतुष्ट होकर बेपरवाह नहीं होता है। साथ ही वह अभिमान को अपने ऊपर हावी नहीं होने देता है और उसकी नज़र भविष्य के बड़े लक्ष्यों पर टिकी रहती है। धोनी ने एक कप्तान के रूप में कभी अपने खिलाड़ियों को विफलता का ऐहसास नहीं होने दिया। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हार के बाद टीम को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा था। लेकिन धोनी ने इसके चलते खिलाड़ियों पर कभी आरोप नहीं लगाया।
आपकी राय
क्या आप इस स्टडी के निष्कर्ष से सहमत हैं? धोनी की कप्तानी को आप किस तरह आंकते हैं? क्या धोनी में विश्व कप भारत लाने की क्षमताएं हैं? नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी राय लिखकर सबमिट करें और दुनिया भर के पाठकों से शेयर करें-
उम्र, अनुभव और प्रदर्शन के आधार पर भारतीय व पाकिस्तानी टीम की तुल
No comments:
Post a Comment